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प्राचीन इतिहास का गवाह है निमाज का मगरमण्डी माता का मँदिर...हरजीतसिह निमाज की कलम से

साथियों आज में आपको मगरमण्डी माताजी के मन्दिर के बारे में कुछ बताना चाहूँगा । जो मेरी जानकारी में हे।
इस मन्दिर का निर्माण आठवीं शताब्दी मे चोल वंश के राजा ने करवाया था। इस मन्दिर का निर्माण दक्षिणी भारत के कारीगरों द्वारा किया गया था। चोल वंश दक्षिणी भारत से ही था। इस मन्दिर के निर्माण मे काम मे लिए गएे पत्थर भी बहुत ख़ास हे। इन पत्थरों मे लौह तत्व की काफी मात्रा हे। यदि आप वहा बिखरे पत्थरों को एक दुसरे से टकरावोगे तो एक ख़ास तरह की धवनी निकलती हे। लौह तत्व की अधिकता की वजह से इतने वर्षो के बाद भी इन पत्थरों पर की गई चित्रकारी वेसे की वेसी हे।
मगरमण्डी उस समय का बहुत ही समृद्ध नगर था। इसका नाम मगरमण्डी इसलिए पड़ा क्योकी यह नगर मगरो (पहाड़) के पास बसा हुआ था। उस ज़माने में जिस नगर मे बहुत व्यापार होता था उस नगर को मण्डी कहते थे। क्योकी यह एक बड़ा नगर था इसलिए चोल राजा ने यंहा पर इस मन्दिर का निर्माण करवाया था। मुख्य मन्दिर सात मंज़िला हे जिसके उपर की दो मंज़िल ही बाहर हे शेष पाँच मंज़िल अभि भी मिट्टी में दबी हुई हे। इस मन्दिर की प्रत्येक मूर्ति अपने आप में कला का एक इतिहास समेटे हुए हे। महिषासुर मर्दिनी की मूरति,सरस्वती की मूर्ति ,कार्तिकेय की मूर्ति , गणेश मूर्ति , भगवान विष्णु के कई अवतारों का चित्रण , कामदेव की मूर्ति,सुरज भगवान की प्रतिमा देसी कई प्रतिमाएँ एेसी हे जिन्हें बस देखते ही जाओ।
तेरहवीं शताब्दी में मीर खाँ पिण्डारी अफ़ग़ानिस्तान से सोमनाथ मन्दिर पर आक्रमण करने के लिए निकला। कई इतिहासकार कहते हे कि बाबर पहला आक्रमणकारी था जिसने भारत मे तोपों को काम में लिया पर उससे पहले मीर खाँ पिण्डारी तोपें लेकर आया था। मगरमण्डी एक बहुत ही समृद्धशाली नगर था इसलिए मीर खाँ ने सोमनाथ जाते हुए इस नगर को लूटा ओर पुरी तरह से तबाह कर दिया। मगरमण्डी स्थित चामुण्डा माता के मन्दिर को भी ध्वस्त करने की पुरी कोसीश की पर वो कामयाब नही हो सका ओर मन्दिर का कुछ हिस्सा ही ध्वस्त कर सका। उसने तोपों से पुरे नगर को उजाड़ दिया । मन्दिर पर आज भी कई जगह तोप के गोले के निशान देखे जा सकते हे।इस बर्बादी के बाद उस नगर के लोग अलग अलग जगहों पर जा कर बस गए। निम्बाज , खेडादेवगढ, आकेली(एक अकेली महीला वंहा जाकर रहने लगी इसलिए इसका नाम अकेली अर्थात आकेली पड़ा) बागीयाडा, आदि आस पास के कई गाँव इसी शहर के निवासियों ने बसाये थे।
वर्तमान में यह मन्दिर पुरातत्व विभाग के अधिन हे। राजस्थान में पुरातत्व विभाग के जितने भी संग्रहालय हे लगभग सभी में इस मन्दिर की प्रतिमाएँ रखी हुई हे। यह राजस्थान का दुसरा सबसे पूराना मन्दिर हे।इससे पूराना सातवी शताब्दी का चनदरेशवर मन्दिर हे जो झालरापाटन में हे। अभि इस मन्दिर के सौन्दर्यकरण का कार्य चल रहा हे। वर्तमान में चल रहे कार्य से मन्दिर की आभा देखते ही बन रही हे।
आप सभी से अनुरोध हे की जो मेरी जानकारी मे था वो मेंने आपके सामने रखा हे यदि कोई भूल हो तो मेरा मार्गदर्शन करावे।
---आईबीखान,जैतारण

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