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तो इस बार नेताओं ने क्यो नहीं करवाया रोजा इफ्तार...!

जैतारण/आईबीखांन...
जैतारण की सियासत मे अल्पसंख्यको के वोटों पर अपनी पकड़ रखने वाले विभिन्न नेताओं ने  माहे रमजान के पाक मुकदस महिने के रोजो मे इसबार इस वर्ग के लोगों को किसी भी सियासती नेता खासकर पंजे की पार्टी से ताल्लुक रखने वालो ने रोजा इफ्तार का कार्यक्रम आयोजित नहीं करने से जैतारण की सियासत मे इन दिनों यह बात खास चर्चा का विषय बन गई है,अलबत्ता अल्पसंख्यक वर्ग मे अपनी राजनैतिक पेठ बनाने के लिए यहां कई नेताओं व्दारा इस पवित्र माह मे अब तक कई बार रोजा इफ्तार का कार्यक्रम आयोजित करते है,लेकिन इस बार ऐसे आयोजन करने के लिए वे नेता दूरी बनाते दिख रहे है,बदलती सियासत का असर है या फिर अपने अन्य वोटों पर पकड़ कमजोर होने का भय है।अबजब माहे रमजान के इस मुकदस माह के रोजे गिनती के ही रहे है यानि पवित्र माह अलविदा हो रहा है।इस अनाड़ीकलमकार को यह बात अच्छी तरह याद है की जैतारण की सियासत मे कुछ वर्ष पहले सियासत मे अपनी जाजम बिछाने एवं अल्पसंख्यक समुदाय मे अपनी पहचान बनाने के लिए कुछ नवोदित नेताओं ने लगातार रोजा ए इफ्तार का कार्यक्रम आयोजित किया करते थे,लेकिन उनकी बिगड़ती सियासत ने उन्हें अब ऐसे आयोजन करना शायद भूला दिया है,जहां तक मुझे याद है कि एक युवातुर्क पेरासूटी नेता ने राजनीति मे अपनी धमाकेदार एन्टी करने के लिए कई साल तक रोजा इफ्तार का कार्यक्रम रखा,बावजूद इसके इस वर्ग का रूझान उनकी तरफ नहीं बढ पाया।यही नही जैतारण की सियासत मे जब कभी भी किसी नेता खासकर पंजे की पार्टी मे अवतरण होता है तो वे सबसे पहले अपना वोट बैंक बनाने एवं इस वर्ग की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए रोजा इफ्तार आयोजित करते है।कांग्रेस मे तो रोजा इफ्तार करवाने की परम्परा रही है।विगत 19 जून को प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट की अगुवाई मे यह कार्यक्रम आयोजित हो भी चुका है।मगर यह दिगर बात है।असल बात जैतारण की सियासत के उन नेताओं की है जो यू तो अल्पसंख्यको के हितैषी होने का राग अलापते है,लेकिन लगता उनको इसबार यह आभास हो गया है की जैतारण का अल्पसंख्यक वर्ग उनके साथ नहीं है,शायद यही एक वजह है की हर साल रोजा इफ्तार करवाने वाले वे नेता इस बार ऐसे कार्यक्रम से अब किनारा कर लिया है।हालांकि रोजा इफ्तार कार्यक्रम के लिए न तो कोई अल्पसंख्यक नेता ऐसे नेताओं को कभी प्रेरित करता है और न ही वे ऐसे कार्यक्रम की लालसा रखते है।चलते चलते एक बात का जिक्र जरूर करूंगा जैतारण के एक नेताजी के बारे मे जो पिछले कई सालो से जश्न ए ईद मिलन का कार्यक्रम रखते है,कुछ नेता उनकी देखादेखी भी करते रहे है।बदलते सियासी मिजाज के कारण हो सकता है नेताजी का मानस भी इसबार बदल गया वो अबकी बार ईद मिलन कार्यक्रम  करेंगे या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा, मगर इतना तो इस अनाड़ीकलमकार को भी यह समझ मे आ गया की इसबार रोजा इफ्तार का कार्यक्रम न रखने वाले नेताओं को यह आभास हो गया की अल्पसंख्यक वर्ग ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने से उन नेताओं को कभी अपना नेता स्वीकार नही करेंगे, शायद उन नेताओं को यह आभास अब अच्छी तरह से हो गया है लगता,शायद यही कारण है की जैतारण मे इस दफा किसी भी नेता ने रोजा इफ्तार का आयोजन नहीं रखा, वैसे इनके रखने या न रखने से फर्क भी नही पड़ता, यह कार्यक्रम कौमी एकता एवं भाईचारे का संदेश ही देता है,मगर सियासतदानों ने इसके बदले मे अपनी सियासत चमकाने की हरबार नाकाम कोशिश जरूर की है...9413063300

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