...तो अब कैसे याद आने लगे है कार्यकर्ता
आईबीखांन, जैतारण की कलम से
सूबे की सबसे बडी पंचायत के चुनावों मे अब जब दो चार माह ही अवशेष रह गए है,ऐसे मे इन चुनावों की तैयारियों मे जुटे जैतारण इलाके के सियासतदानों को अपने बिछडे कार्यकर्ताओं की यादें अब सताने लगी है।अपने कार्यकर्ताओं के दमखम पर चुनावी वैतरणी पार करने वाले एवं चुनावी नैया डूबा चुके इलाके के सियासतदानों का आलम यह है की पहले इन कार्यकर्ताओं के नेतावर चेहरा देखना तो दूर उनसे दुआ सलाम करने से भी गुरेज़ करते थे,लेकिन अब जब विधानसभा के चुनावों की तिथियां ज्यो ज्यो नजदीक आ रही है,त्यौ त्यौ सभी जमातो के नेताओं को अपने कार्यकर्ताओं की यादे दिन ब दिन सताने लगी है।बात चल ही गई है तो बताते चले की अबतलक सत्ता के सुख से वंचित रहे सूबे की सरकार के अनेकों कार्यकर्ताओं की इन दिनों खास तवज्जो मिलने लगी है।पिछले दिनों सुबे की मुख्याजी का जैतारण आगमन से पूर्व यहां सत्ता के सुख से वंचित रहे अनेकों कार्यकर्ताओं ने अपने ही सरकार के मंत्री पर उपेक्षा करने का न केवल आरोप लगाए,बल्कि उन्होंने मुख्याजी के कार्यक्रम मे इसी कारण अपनी गैर हाजिरी दिखाकर मुख्याजी को खुलेतौर पर यह संदेश पहुचाने का भी प्रयास किया की यहां उनकी उपेक्षा हो रही है,यह दिगर बात है की ऐसे कार्यकर्ताओं एवं नामी नेताओं के इस तर्क पर मंत्रीजी ने इस अनाडीकलमकार के एक सवाल के जबाब मे दो टूक लब्जों मे यह कहा की मे अपने कार्यकर्ताओं को भगवान मानता हूं,उनका तर्क भले ही लाजमी रहा होगा, लेकिन उनकी पार्टी के बहुतरे ऐसे कार्यकर्ताओं एवं नेताओं ने उल्टा मुझे फोनकर मंत्रीजी से नये सवाल करने का पैगाम भेजा, यह अलग बात है की यह अनाडीकलमकार डाकिए का काम नहीं करता...!लेकिन मुख्याजी की रैली के बाद अब अनेकों कार्यकर्ताओं की यादे आने लगी है।हालांकि दो चार दिन पहले छोटे नेताजी के हुए चुनाव मे कार्यकर्ताओं की याद कैसे आती है यह बात अखबारातो मे पढ लिया होगा। इधर पंजे वाली पार्टी मे भी इन दिनों सुबे की बडी पंचायत के चुनावों को लेकर न केवल कार्यकर्ता याद आने लगे है बल्कि इस जमात मे तो जबसे जैतारण मे नेताश्री की सक्रियता बढी है तबसे ही नेताजी अपने कार्यकर्ताओं को जोडें रखने के लिए हर जतन कर रहे है।यहां नेताजी के कई पुराने सखा नेताश्री का दामन थामने से पंजे वाली पार्टी के कार्यकर्ताओं के भाव यकायक बढ गए है।नेताश्री के पास बढती कार्यकर्ताओं की फौज से न केवल नेताजी की बल्कि पंजे की पार्टी से टिकट की मांग करने वाले नेता भी थोडा थोडा मायूस होने लगे है।वे नेताश्री और नेताजी से आगे निकलने की हौड लगा रहे है।मगर यह भी सच है कि पंजे के बैनर तले नेताश्री या नेताजी मे कोई एक ही चुनाव जरूर लडेंगे... खैर यह उनका अपना मामला है,अपन इसमें दखल नहीं देगे, लेकिन चलते चलते यह जरूर कहेंगे की चुनावी मौसम आते ही इधर भी कार्यकर्ताओं की यादें आने लगी है तो उधर कार्यकर्ताओं के भाव बढने लगे है।
*बात कितनी भी हो सच मानी नहीं जाती,*
*मुठ्ठियां अपनो पे अब तानी नहीं जाती।*
*क्या समय ये आ गया है देखिये इसमे,*
*अब कोई नीयत भी पहचानी नहीं जाती*
9413063300
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