...जहां नही होता है होली का दहन-
जैतारण-आई.बी.खांन...
ग्राम पंचायत गरनिया की सरहद मे स्थित आसन मे हाली के दहन की प्रथा ७१३ वर्ष पुर्व एक योगीराज के श्राप देने के बाद होली का दहन बंद हो गया है। शदियो पुर्व होली दहन के लिये रोपी गई सूखी खेजड़ी के जड़े फूट गई है जो हरीभरी होकर आज भी लहरा रही है जिनकी वहॉ की महिलाए होली के दिन केवल पूजा अर्जना कर वर्षो पुरानी परम्परा को निभा रही है।
वर्षो पुरानी बात है- विकम संवत् १३०० मे आसन के तपस्वी महन्त पिछाम्बरनाथ के समय आसन मे होली के दहन होने के बाद गरनिया मे होली का दहन करने की परम्परा वर्षो से चली आ रही थी लेकिन लगभग संवत् १३४३ मे ग्राम गरनिया मे ३६० घर तेतरवाल जाट के हुआ करते थे तथा उनका ग्राम मे वर्चश्व होने के कारण उन्होने उस दौरान आसन मे पहले दहन करने की परम्परा को तोड़ते हुए उन्होने पहले ग्राम गरनिया की होली का दहन करने के बाद वे आसन पहुचे तो इस इस परम्परा को तोडऩे की भनक महन्त को लग गई तब महन्त ने आसन मे होली के दहन के लिये आये लोगो को रोक दिया। तथा दहन करने से मना कर दिया। फिर भी ग्रामीण नही माने उन्होने मिलकर सुखी खेजड़ी को काटकर रोपी गई होली टेडी जरूर हो गई लेकिन उन लोगो ने वह नीचे नही गिर पाई। योगी के आदेश के उल्लंघन करते देख उन्होने वहा पर श्राप दे दिया कि आज के बाद आसन मे होली को कोई भी दहन नही कर सकेगा। यह कल से ही हरी हो जायेगी।
सूखी खेजड़ी हो गई हरीभरी--
आसन मे मौके पर खेजडी का तना टेडा जरूर है लेकिन वह पूर्ण रूप से हराभरा है,जिनकी वहा के लोगो द्वारा होली के दिन पूजा करते है आसन निवासी बताते है कि अमर होली के छिलके को बच्चो के गले मे लटकाने के कूकर खांसी बंद हो जाती है।
गजनीपूर से बना गरनिया तथा चले गये तेतरवाल जाट
आसन मे पहले होली दहन की परम्परा तोडऩे के कारण महन्त पिछम्बरनाथ द्वारा तेतरवाल जाटो को श्राप दे दिया कि इस गॉव से १२कोष की परिधि मे कोई भी तेतरवाल जाट निवास नही करेगे इसके अभिषाप के बाद भी वे लोग वहा पर रहते है तो प्रभुल्लित नही होगे तब तेतरवाल जाट यहा से गॉव छोडक़र चले गये। तथा इस गॉव का नाम पहले गजनीपूर था तब योगी ने नाराज होकर इस गॉव का नाम (अश्लील) गॉव रख दिया लेकिन यह नाम अश्लील होने से नाम मे कुछ सुधार करते हुए गरनिया रख दिया। यह जानकारी गरनीया का वृद्व ग्रामीणो के द्वारा उपलब्ध करवाई गई है।
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